*यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।*
संघर्ष मोर्चा Exclusive‘जिस कुल में स्त्रियों का पूजन होता है, वहाँ देवता प्रसन्न रहते हैं ।’
नारीशक्ति का पूजन करने की बात कहकर भारतीय संस्कृति ने तो कमाल कर दिया । जहाँ नारी नारायणी के रूप में सम्मानित होती है, वहाँ देवत्व छलकता है । इस देवत्व का परिचायक तथा व्यावहारीकरण रक्षाबंधन महोत्सव है ।
*रक्षा सूत्र बांधते समय ⏰…*
*🌹 मन्त्र 🌹*
*येन बद्धो बली राजा दान वेंद्रो महाबल।*
*तेन त्वान अभीवध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।*
🌹 बहन एक धागा लेकर भाई के हाथ पर बाँधती है । चाहे वह धागा सूत का हो, चाहे आधुनिक ढंग की बनी-बनायी राखी हो लेकिन उसमें बहन की भावना काम करती है कि ‘मेरे भाई का सुयश हो, मेरा भाई त्रिलोचन बने । बाहर की आँखों से जो जगत दिखता है, उसको सच्चा मानकर उलझे नहीं, ज्ञान की नजर से देखे कि यह जगत बदलता है, मन बदलता है, शरीर बदलता है फिर भी अबदल आत्मा एकरस है । जैसे शिवजी तीसरे नेत्र से ज्ञानप्रकाश में जीते हैं, विकारों को भस्मीभूत करने का सामर्थ्य सँजोये हुए हैं, ऐसे ही मेरा भैया त्रिलोचन बने ।’- इस भावना से भाई के ललाट पर बहन तिलक करती है ।
🌹दिखने में वह पतला-सा सूत्र या धागा है लेकिन वर्ष भर कुसंकल्पों से सुरक्षित होने का और निरोग नारायण की स्तुति करते, सुमिरन करते मधुमय जीवन जीने का एक संदेश देता है । यह एक कवच है । इस कवच ने पूर्वकाल में कइयों को सुरक्षित किया है, ऐसी कई ऐतिहासिक घटनाएँ हैं ।
🌹सिकंदर की पत्नी ने देखा कि ‘राजा पुरु का बड़ा भारी प्रभाव है । सिकंदर विजेता तो हैं लेकिन अभी पुरु से चिंतित हैं ।’ उसने राजा पुरु को राखी भेजकर अपने पति की सुरक्षा करा ली ।
🌹शिशुपाल पर सुदर्शन चक्र चलाते समय भगवान श्रीकृष्ण की उँगली को क्षति हुई, खून बहने लगा । द्रौपदी ने अपनी साड़ी की लीरी (साड़ी का टुकड़ा) से कृष्ण की उँगली पर पट्टी बाँध दी और उसकी सुरक्षा की ।
🌹जब दुःशासन द्रौपदी की साड़ी खींच रहा था तब उसी एक नन्ही-सी लीरी के बदले में भगवान के संकल्प से अथाह वस्त्रों का अवतरण हुआ । संकल्प में कितना बल है ! नारायण संकल्प करते हैं तो अथाह वस्त्रों की परम्परा
चल पड़ती है ।
🌹ऐसे ही बहन भाई के लिए, भाई बहन के लिए, साधक साधक के लिए, पिता पुत्र के लिए, गुरु शिष्य के लिए, शिष्य गुरु के लिए इस दिन शुभ संकल्प करते हैं । एक-दूसरे के संकल्प सहायक होते हैं । शुभ संकल्प करनेवाले का हृदय भी शुभ होता है और जिसके प्रति शुभ संकल्प किया जाता है, उसका भी मंगल होता है । ‘भविष्य पुराण’ में लिखा है : सर्वरोगोपशमनं सर्वाशुभविनाशनम् । सकृत्कृते नाब्दमेकं येन रक्षा कृता भवेत् ।।
‘इस पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक है । इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्ष भर मनुष्य रक्षित हो जाता है ।’
इसका मतलब दुःख नहीं आयेंगे ऐसा नहीं है, दुःख का प्रभाव ज्यादा नहीं पड़ेगा ।
*राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त*
सुबह 7:43 बजे से 9:18 बजे तक चर,
सुबह 9:18 बजे से लेकर 10:53 बजे तक लाभ,
सुबह 10:53 बजे से लेकर 12:28 बजे तक अमृत,
दोपहर 2:03 बजे से लेकर 3:38 बजे तक शुभ,
सायं 6:48 बजे से लेकर 8:13 बजे तक शुभ,
रात्रि 8:13 बजे से लेकर 9:38 बजे तक अमृत,
रात्रि 9:38 बजे से लेकर 11:03 बजे तक चर,
इन मुहूर्तों में राखी बांधी जा सकती है। अमृत मुहूर्त के समय राखी बाँधना बहुत ही फलदायी माना जाता है। इसलिए कोशिश करें कि इसी समय अपने भाई को राखी बाँधें और भाई भी अपनी बहनों से इसी समय राखी बँधवाएँ।