विकासखण्ड के शालाओं में शिक्षकों की भारी कमी होने के बाद भी BEO कार्यालय में शिक्षक कर रहे हैं बाबू का कार्य..

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सक्ती (जांजगीर चाम्पा)- सक्ती में शैक्षणिक जिला का मुख्यालय होने के बाद भी क्षेत्र के शालाओं की समस्याओं व शैक्षणिक गुणवत्ता के प्रति जिम्मेदारों को कोई विशेष रूचि देखने को नही मिल रहा है। इसका उदाहरण देखने को मिलता है विकासखण्ड- सक्ती के लगभग दर्जन भर शासकीय पूर्व माध्यमिक शालाओं में आज भी दो-दो शिक्षक ही पढ़ाई-लिखाई का कार्य करा रहे हैं।
जिनमें से सक्ती विकासखण्ड के अन्तर्गत शासकीय पूर्व माध्यमिक शालाओं के ये नाम हैं- पासीद, नन्दौर खुर्द, नन्दौर कला, सेंदरी, सकरेली खुर्द, असौंदा, रैनखोल, बोकरामुड़ा जिनमें भौतिक रूप से वर्तमान में अब भी मात्र दो-दो शिक्षक ही अध्यापन कार्य के साथ-साथ अन्य सभी कार्य को देख रहे हैं।
ऐसे में लोगों के मन में सवाल यह उठना लाजिमी है कि इन शालाओं में तीन-तीन कक्षाओं के लिए मात्र दो-दो शिक्षक किस तरह से व्यवस्था का संचालन कर रहे होंगे। इस सत्र की ही बात करें तो परीक्षा का समय भी बहुत नजदीक आ गया है लेकिन इन सबसे जिम्मेदारों को अब भी कोई सरोकार नही है।
ऊपर से बच्चों के भविष्य को अधर में लटकाते हुए, अनावश्यक रूप से शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य में संलग्नीकरण किया गया है। बीईओ कार्यालय सक्ती में भरपुर कर्मचारी कार्यरत होने के बाद भी लम्बे अंतराल से दो-दो शिक्षकों को कार्यालय में संलग्नीकरण करके बाबूगिरी कराया जा रहा है। जिनमें शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला बोकरामुड़ा व चौंराबरपाली में पदस्थ शिक्षकों को बीईओ कार्यालय सक्ती में शासन के नियमानुसार शिक्षकों को कार्यालय में संलग्नीकरण नही किये जाने के मूल नियमों के विपरीत जाकर बाबूगिरी का कार्य कराया जाना शिक्षा का अधिकार के तहत नियमों के उल्लंघन की श्रेणी में भी आता है।
अब ऐसे में शालाओं में किस तरह से आ पायेगी गुणवत्ता परक शिक्षा के स्तर में सुधार ?
ऐसा भी नही है कि उक्त शालाओं में अध्यापन व्यवस्था करने के लिए शिक्षक उपलब्ध नही हैं क्योंकि आज भी कुछ शाला ऐसे भी हैं जहाँ 4 से 5 या इससे भी अधिक की संख्या में शिक्षक कार्यरत हैं। यदि जिम्मेदारों को वास्तव में गुणवत्ता युक्त शिक्षा से सरोकार होता तो दो-दो शिक्षकों को कार्यालय में बाबूगिरी कार्य करने के लिए संलग्न करके नही रखा जाता। बल्कि इन शिक्षकों को शालाओं में अध्यापन कार्य के लिए मुक्त किया जाना चाहिए था ताकि उक्त अति आवश्यकता वाले शालाओं में भी अध्यापन कार्य गुणवत्ता युक्त शिक्षण व्यवस्था प्राप्त हो सके।

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