बिलासपुर।पदोन्नति में आरक्षण के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार ने अपनी भूल स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट में माना है कि नियम बनाते समय हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का ध्यान में नहीं रखा गया। राज्य सरकार ने प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान घोषित किया था। 22 अक्टूबर 2019 को राज्य सरकार ने प्रमोशन में आरक्षण नीति के तहत SC वर्ग के लिए 13 फ़ीसदी और ST वर्ग के लिए 32 फ़ीसदी आरक्षण का प्रावधान किया था। हाईकोर्ट में इस प्रावधान के ख़िलाफ़ याचिका दायर हुई जो विष्णु तिवारी और गोपाल सोनी की ओर से दायर की गई। याचिकाकर्ताओं की यह रिट पर हाईकोर्ट की डिवीज़न बेंच क्रमांक 1 याने चीफ़ जस्टिस रामचंद्रन और जस्टिस पीपी साहू सुनवाई कर रही है। यह याचिका शुक्रवार को लगी थी, जिसे शासन के आग्रह पर सोमवार तक का समय दिया गया था। हाईकोर्ट में लगी याचिका 9778/2019 में याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता प्रफुल्ल भारत और विवेक शर्मा ने तर्क दिया है कि राज्य सरकार का यह आदेश हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेशों के विपरीत है। हाईकोर्ट छत्तीसगढ़ ने शरद श्रीवास्तव विरुद्ध छगविमं के प्रकरण में 4 फ़रवरी 2019 को प्रमोशन के आदेश को असंवैधानिक माना था, वहीं सुप्रीम कोर्ट में इसी विषय का प्रकरण जनरैल सिंह के द्वारा चलाया गया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने प्रमोशन में आरक्षण को ग़लत मानते हुए टिप्पणी की ‘क्रीमीलेयर को आरक्षण का फ़ायदा नहीं दिया जा सकता’। इस मामले में हाईकोर्ट ने सुनवाई की जिसमें राज्य सरकार ने डिवीजन बेंच के सामने भूल स्वीकारी और कहा कि ‘अधिकारियों ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का अध्ययन करे बग़ैर नियम बना दिया है, एक हफ़्ते का समय दें, हम गलती सुधारते हैं’। हाईकोर्ट ने मामले में राज्य की ओर से दिए कथन के बाद एक सप्ताह का समय दे दिया है।
याचिका की अगली सुनवाई हाईकोर्ट में सोमवार 9 दिसंबर को होगी।