नई शिक्षा नीति सामयिक व व्यवहारिक है-संजय शर्मा…25 :1 शिष्य – शिक्षक अनुपात से ही होगा कौशल विकास…अधोसंरचना विकसित करने पर ही अपेक्षित परिणाम

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छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा एक लंबे अरसे बाद नई शिक्षा नीति जारी की गई है, यह शिक्षा नीति नौनिहालों से लेकर माध्यमिक शिक्षा तक बच्चों को प्रोफेशनल व व्यवहारिक शिक्षा का परिचय कराएगी।

एक लंबे समय से वैश्विक मानकों पर खरा उतरने वाला और भारतीय नैतिक मूल्यों के आधार वाली शिक्षा की आवश्यकता महसूस की जा रही थी, ऐसे समय में जब विश्व समुदाय अन्तरसम्बन्धित हो रहे है, भारत की शिक्षा को भी ग्लोबल स्तर पर अंतर्निहित करने की आवश्यकता थी, इस शिक्षा नीति ने ये अपेक्षाएं पूरी की है।

नई शिक्षा नीति में इस विषय पर विशेष रुप से ध्यान दिया गया है कि कक्षा 6 वीं से ही प्रोफेशनल शिक्षा की तैयारी हो और कक्षा 9 वी से ही व्यवहारिक व प्रायोगिक शिक्षा दिया जावे, इससे माध्यमिक शिक्षा उत्तीर्ण करने वाले बच्चे भी स्वावलंबी हो सकेंगे।

बोर्ड परीक्षा का दबाव भी घटाया गया है, प्रत्येक छात्र के व्यक्तिगत उन्मुखीकरण पर जोर दिया गया है, इससे उनके भीतर सीखने और स्वयं से ही कार्य विकसित करने की प्रवृति बढ़ेगी।अपने क्षेत्र, प्रदेश, देश के वातावरण व विकास को समझ सकेंगे, इस स्तर की शिक्षा से आगे स्वावलंबी हो सकेंगे साथ में रोजगार परक शिक्षा से जोड़ने के कारण माध्यमिक शिक्षा के बाद मध्यम स्तर के कार्य करने में सक्षम होंगे, यह बेरोजगारों की एक और खेप पैदा नहीं करेगी।

सीखने की अवधि को भी 2 वर्ष से 6 वर्ष विशेषतः निर्धारित किया गया है, जिसमे वे मातृभाषा व स्थानीय भाषा को सीखेंगे, 6 वी से बच्चे को आगे की लिए समझ विकसित होने लगेगा, इसके लिए 5 + 3 + 3 + 4 का स्तर वर्तमान में उचित है।

भाषा दक्षता, वैज्ञानिक स्वभाव, सौंदर्य बोध, नैतिक तर्क, डिजिटल साक्षरता, भारत ज्ञान व सामयिकी को शामिल कर बच्चो को जनसामान्य के बीच पहुंचा सकते है, शिक्षा के अधिकार को 12 वी तक बढ़ाया जाना भी सभी के लिए शिक्षा की ओर एक बड़ा कदम होगा।

एक स्ट्रीम में विषय के अलगाव के लिए छात्रों के चयन को प्राथमिकता दिया गया है, जो बच्चे की स्वेच्छा पर आधारित होगा, जिससे वे बेहतर परिणाम दे सकेंगे, छात्रों के विषय चयन पर स्वतंत्रता उसके शिक्षण कौशल को बढ़ाएगी, कौशल उन्नयन – प्रायोगिक कार्य को बढ़ावा दिया जाना नई शिक्षा नीति की विशेषता है और इसी के आधार पर छात्रों में रटने की प्रवृत्ति खत्म होगी, साथ ही खुद करने की प्रेरणा मिलेगी। उच्च स्तर की शिक्षा को भी प्रायोगिक व व्यवहारिक बनाते हुए कौशल से जोड़ा गया है, जो वर्तमान की आवश्यकता है।

इस शिक्षा नीति के लिए 25 : 1 शिष्य – शिक्षक अनुपात दिया गया है, जिसे कागज के बजाय जमीन पर उतारने के लिए बेहतर अधोसंरचना की भी आवश्यकता होगी, इसके लिए ईमानदार प्रयास कर नई शिक्षा नीति के उद्देश्य से करोड़ो छात्रों को स्वयंसेवी व स्वावलंबन की दिशा दिया जा सकता है।

 

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