गुणवत्ता में राजस्थान पहला नम्बर, और छत्तीसगढ़ पंचायत ननि शिक्षक संघ के प्रदेशाध्यक्ष संजय शर्मा एवं प्रदेश उपाध्यक्ष हरेंद्र सिंह, देवनाथ साहू, बसंत चतुर्वेदी, प्रवीण श्रीवास्तव, विनोद गुप्ता, प्रांतीय सचिव मनोज सनाढ्य, प्रांतीय कोषाध्यक्ष शैलेन्द्र पारीक, प्रांतीय संयोजक सुधीर प्रधान, प्रदेश मीडिया प्रभारी विवेक दुबे ने शासन से चर्चा में छत्तीसगढ़ में राजस्थान शिक्षा मॉडल लागू करने मांग किया था, तब अधिकारी बचाव की मुद्रा में आ गए थे। वहाँ के शिक्षक, पालक, छात्र और शिक्षा व्यवस्था का अध्ययन भी छत्तीसगढ़ द्वारा किया गया था, पर पता नही शिक्षा व्यवस्था में इसे लागू नही करने की कौन सी मजबूरी आई थी?
शिक्षक संगठन व शिक्षक जो मैदानी शैक्षणिक कार्यकर्ता हैं, जब तक इन्हें चर्चा या कार्यशाला में शामिल नहीं किया जाता, यही हाल रहेगा। प्रशानिक कसावट व मनमानी के तौर पर शिक्षा प्रशासन कार्य करते जा रहे है,,
वास्तविक निरीक्षण तो कागज की खानापूर्ति बन गई है,,शिक्षक बेहतर शिक्षा हेतु संकल्पित है, विभाग शिक्षको के बीच भेदभाव बन्द करे।
शिक्षक जब तक अपने भविष्य के प्रति 100% संतुष्ट नहीं रहेगा, तब तक वे शाला मे 100% मनोयोग के साथ काम नहीं कर सकते।
शासन को सम्पूर्ण संविलियन, समय पर क्रमोन्नति/समयमान देने, पदोन्नति समय सीमा में करने, वेतन विसंगति को समाप्त करने, पुरानी पेंशन बहाली, स्थानांतरण, आदि विषय शिक्षको से चर्चा कर दूर किया जाना चाहिए।
शाला में सेटअप के अनुसार पदों की पूर्ति, छात्र संख्या के हिसाब से शिक्षको की पदस्थापना, शाला भवन की व्यवस्था, स्वच्छता व पर्यावरण का ध्यान, विद्युत व पेयजल की व्यवस्था, प्रयोगशाला कक्ष, पुस्तकालय, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि पाठ्येतर गतिविधि अपनाकर बेहतर शिक्षा की ओर आगे बढ़ सकते है।
अच्छे परीक्षाफल के शिक्षक का प्रोत्साहन व कमजोर परीक्षाफल के लिए प्रशिक्षण से मनोबल को बढ़ाने वाली योजना होना चाहिए।
शिक्षा गुणवत्ता में वृद्धि, विभागीय आदेश बस से नही आनेवाला है, इसके लिए शिक्षक, पालक, बालक और विभाग की संयुक्त पहल की आवश्यकता है, विभाग में शिक्षण पद्धति, शिक्षण कौशल, पालक परिचर्चा व सहभागिता, छात्र की उपस्थिति व पास- फेल नीति, विभाग के निचले स्तर के काम में पारदर्शिता व विश्वसनीयता की बड़ी भूमिका हो सकती है।