छत्तीसगढ़ में शिक्षा गुणवत्ता के लिए कार्य योजना जरूरी……संजय शर्मा ने कहा….सर्वेक्षण में कक्षा अध्ययन ही बेहतर – पर शिक्षक के पास कक्षा के लिए समय ही नही

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छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा ने कहा है कि पिछले एक दशक में छत्तीसगढ़ ने भी अपनी प्राथमिक शिक्षा का पुख्ता करने के लिए काफी कुछ किया है। बच्चों का स्कूल तक पहुंचना आसान हुआ है और स्कूल में दाखिलों और हाजिरी में भी सुधार हुआ है, लेकिन इनके आंकड़ों के पीछे का एक सच यह भी है कि हमारा सारा ध्यान नित नए – नए प्रयोग पर रहा है, इसी के साथ शिक्षा की गुणवत्ता में काफी तेजी से कमी आई है। गुणवत्ता में कमी के लिए शिक्षा के अधिकार कानून को जिम्मेदार ठहराना किसी भी तरह से ठीक नहीं है, लेकिन यह तो कहना ही होगा कि शिक्षा का अधिकार गुणवत्ता में कमी को रोकने में नाकाम रहा है।

कोरोना तो पूरे देश मे रहा है, पर छत्तीसगढ़ के शिक्षा में पिछड़ने के कुछ अहम कारण भी है,,वर्तमान में छत्तीसगढ़ में दर्जनों एन0जी0ओ0 कार्य कर चुके हैं उनमें से अभी भी कुछ कर रहे हैं जैसे-

*संपर्क फाउंडेशन* : इस संस्था ने अंग्रेजी और गणित की किट बच्चों को बांटी गई थी। यह प्रयोग पूरा हो गया है। अब बांटी गई किट भी खराब हो गई हैं।

*बीबीसी फुल ऑन निक्की* : यह संस्था प्रदेश में ऑडियो प्रोग्राम के जरिए बच्चों को बेहतर पढ़ाने पर जोर दे रही है।

*मेलजोल* : यह संस्था बच्चों के बाल कैबिनेट को सशक्त करने का काम कर रही है।

*ई-जक्शन* : यह संस्था प्रदेश में दिव्यांग बच्चों के लिए मोबाइल बांटने का काम करती है।

*आरटीई वॉच* : यह संस्थान आरटीई के नियमों पर काम करता है। स्कूलों में इसके नियमों का अमल हो रहा है कि नहीं, इसका मूल्यांकन करते हैं। इसे सिलेबस के आधार पर भी देखते हैं।

*प्रथम संस्थान* : यह संस्थान प्राइमरी स्कूलों में बच्चों के उपलब्धि स्तर को जांचता है।

*एकलव्य संस्था* : यह संस्थान डाइट में काम कर पेडागॉजी के लिए मदद कर रहा है।

*एलएलएफ* : एलएलएफ यानी लैंग्वेज फाउंडेशन प्राइमरी स्कूल के शिक्षकों को ट्रेनिंग देकर सर्टिफिकेट कोर्स कराता है।

*आइएफआइजी* : यह संस्थान शिक्षकों में लैंग्वेज का काम रहा है।

*विद्या भवन सोसायटी* : यह संस्था एससीईआरटी के साथ मिलकर किताब लेखन का काम करती है।

*इंडिया एजुकेशन कलेक्टिव* : महासमुंद और बस्तर में यह संस्था क्लासरूम पेडोगाजी काम करती है।

*शिक्षार्थ* : यह संस्था आदिवासी इलाकों के बच्चों का एजुकेशन सुधारने का प्रयोग कर रही है।

*यूनिसेफ* : राज्य में यह संस्थान सालों से स्पोर्ट्स और बच्चों में स्पोर्ट क्वालिटी लाने का काम कर रहा है।

*श्री अरबिंदो सोसायटी* : शून्य पर नवाचार करने का विचार यही संस्था लेकर आई है।

*लर्निंग लिंक फाउंडेशन* : यह फाउंडेशन प्रदेश में साइंस मैथ्स और लैंग्वेज सपोर्ट के लिए काम कर रहा है।

*द टीचर एप* : यह संस्थान द टीचर एप के जरिए शिक्षकों को ऑनलाइन ट्रेनिंग देता है।

*बाधवानी फाउंडेशन* : राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) में वोकेशनल कोर्स के लिए इस संस्थान के मॉड्यूल पर पढ़ाई कराते हैं।

*हुमाना पीपुल टू पीपुल इंडिया* : सर्व शिक्षा अभियान ने हुमाना पीपुल टू पीपुल इंडिया नई दिल्ली के साथ 5 साल के लिए अनुबंध किया है। इसके तहत यह संस्था अब बच्चों के लिए अलग से पाठ्यक्रम बनाकर दे रही है। शिक्षकों की ट्रेनिंग भी करा रही है। यह हरियाणा की संस्था है जो ड्रापआउट पर काम करती है। ड्रापआउट बच्चों के लिए यह संस्थान सालों से काम कर रहा है।

*रूम टू रीड* : यह संस्थान प्राइमरी के बच्चों के लिए कहानी के रूप में बहुत सारी सामग्री उपलब्ध कराने और लाइब्रेरी में किताबें उपलब्ध कराता है। कब बन्द और कब शुरू हो जाता है।

*अजीम प्रेमजी फाउंडेशन* : यह टीचर्स प्रोफेशनल डिवेलपमेंट पर काम कर रहा है।

*लर्निंग लिंक फाउंडेशन और मैजिक बस फाउंडेशन* : दोनों संस्थान मिलकर दिशा कार्यक्रम चला रहे हैं। राज्य के 89 मिडिल स्कूल में इसमें संज्ञानात्मक और सह संज्ञानात्मक क्षमता बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं। साइंस, मैथ्स और हिंदी में लर्निंग क्षमता बढ़ाने के लिए काम रहे हैं।

*इंडस एक्शन* : यह संस्था आरटीई के तहत 25 प्रतिशत सीटों की निगरानी के लिए काम कर रही है।

*लेंड ए हैंड*: ये भी बंद

*एम जी एम एल* :- यह तो लगभग बन्द ही हो गया ।

*इसके अलाववा*- शाला के शिक्षकों द्वारा किये जा रहे कुछ महत्वपूर्ण कार्य जैसे –

सरल कार्यक्रम,
100 दिवसीय पठन कौशल,
अंगना में शिक्षा,
एकलव्य,
जवाहर उत्कर्ष,
नवोदय तैयारी,
मूल्यांकन और ऑनलाइन एंट्री,
टीकाकरण ड्यूटी,
शिविर ड्यूटी,
जाति प्रमाण पत्र,
छात्रवृति,
विभिन्न ऑनलाइन वेबिनार,
संबल सीख कार्यक्रम (बलरामपुर जिला),
सेतु पाठ्यक्रम,
लर्निंग आउटकम,
शून्य निवेश,
पढ़ाई तुंहर द्वार,
FLN निष्ठा प्रशिक्षण,
ड्राप आउट,
UDISE,
विभिन्न गूगल फॉर्मभरना,
DBT,PFMS,
आमाराइट,
खिलौना बनाना,
भाषा एकरूपता (जैसे गुजराती शब्द सीखना),
नव जतन,
GP एप्प,
शाला शिद्धि,
मिशन स्टेटमेंट,
SDP,
बुलटू के बोल,
SMS शिक्षण,
Toy फेयर,
साहित्यिक भाषा धरोहर (लोकल भाषा जैसे कुँड़ुख़ में कहानी लिखना),
PLC,
डिजिटल कंटेंटअपलोड,
मिस्डकॉल,
गुरुजी,
हस्तपुस्तिका,
लक्ष्य वेध,
हमर लइका हमर जिम्मेदारी,
असर प्रोग्राम,
NAS परीक्षा,
Chalk lit,
प्रशिक्षण,
बालवाड़ी,
विद्यांजली,
टीम्स टी विद्यार्थी एंट्री,
राशन कार्ड,
मतदाता सूची,
पेंशन,
मध्यान्ह भोजन आदि शामिल है।

इतनी योजना व इन सभी कार्य के बीच शिक्षक का कक्षा में अध्यापन कार्य ही न्यून हो जाता है, पढ़ाने के अवसर ही नही है तो शिक्षा का स्तर तो निम्न ही होगा, सर्वेक्षण में स्पष्ट हुआ है कि बच्चे ऑनलाइन नही बल्कि कक्षा में ही बेहतर पढ़ते है, सीखते है।

छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा ने कहा है कि न्यूनतम गुणवत्ता को सुनिशचित करने के लिए एक दिशा लेते हुए निरन्तर स्थिरता से कार्य करने के लिए एक शिक्षा संहिता (कार्य योजना) बनाया जाना चाहिए, जो स्कूल में लागू हो।

शिक्षा के अधिकार कानून में भी इस तरह की संहिता का प्रावधान नहीं रखा गया है, इस कानून में ऐसा कोई ब्योरा नहीं है कि स्कूल में न्यूनतम किस स्तर की शिक्षा दी जाएगी, उसमें गुणवत्ता का जिक्र जरूर है लेकिन इसके लिए कोई पैमाना नहीं दिया गया, हालांकि गुणवत्ता बनाना एक जटिल प्रक्रिया होती है लेकिन इन्फ्रास्ट्रक्चर, अध्यापकों की संख्या, कक्षा में छात्रों की संख्या, पढ़ाने के तरीके, शिक्षा के नतीजे आदि कुछ शर्तें हैं जो शिक्षा गुणवत्ता के लिए जरूरी है।

 

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