करीब दो दशक पहले शिक्षकों की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए शुरू किए गए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) को अब शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चत करने के नाम पर ही गैर-जरूरी बनाया जा रहा है। वर्ष 2021 से लागू होने जा रही विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यता संबंधी नई नियमावली के तहत पीएचडी धारक उम्मीदवार बिना नेट उत्तीर्ण किए असिस्टेंट प्रोफेसर बन सकेंगे। नियमावली में कॉलेजों में एपीआई प्रणाली को भी खत्म कर दिया गया है, साथ ही नए शिक्षकों के लिए एक महीने का इंडक्शन कोर्स भी जरूरी कर दिया गया है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बुधवार को इस नई नियमावली को जारी किया।
मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस नियमावली को जारी करते हुए कहा कि 2021 के बाद विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए पीएचडी को अनिवार्य कर दिया गया है और कॉलेजों में भी सहायक प्रोफेसर(सेलेक्शन ग्रेड) की पदोन्नति के लिए भी पीएचडी को अनिवार्य किया गया है। नई नियमावली में दुनिया के पांच सौ श्रेष्ठ रैंकिंग विदेशी शैक्षणिक संस्थानों से पीएचडी करने वाले लोगों को भी सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति में मान्यता दी जाएगी और उनकी नियुक्ति के लिए विशेष प्रावधान किए जाएंगे।
जावड़ेकर ने बताया कि कॉलेजों में शिक्षकों को शोध करने की जरूरत नहीं है बल्कि उन्हें छात्रों को बेहतर ढंग से पढ़ाने की आवश्यकता है, इसलिए एपीआई प्रणाली को खत्म कर दिया गया है। एपीआई प्रणाली विश्वविद्यालय स्तर पर जारी रहेगी और विश्वविद्यालय के शिक्षकों को शोध कार्य पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा। उन्होंने कहा कि कॉलेजों में शिक्षकों के अध्यापन कार्य के मूल्यांकन के लिए एक नई आकलन प्रणाली विकसित की जाएगी। जावड़ेकर ने कहा कि कॉलेजों में बतौर शिक्षक नियुक्ति के लिए मास्टर डिग्री के साथ नेट या पीएचडी अनिवार्य रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि जिन शिक्षकों के लेक्चर एमओओसी में होंगे, उन्हें पदोन्नति में महत्व दिया जाएगा।