ग्रीष्मावकाश में भी मोबाइल में नज़र गड़ाने को मजबूर नौनिहाल…Online class के चक्कर मे छिन रहा बचपन, हो रहे बेहाल…शालेय शिक्षाकर्मी संघ ने भी इसे बताया अव्यवहारिक

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ग्रीष्मावकाश 1 मई से प्रारम्भ हो चुका है,किन्तु इस लाकडाउन अवधि में प्राथमिक से लेकर 12वीं तक के शासकीय हो या प्राइवेट स्कूल हो सभी जगह online class लेने की होड़ मची हुई है,बच्चे और पालक इस बात से हलाकान हैं कि जब शिक्षा सत्र पूरा बीत गया है,कोर्स पूरे हो चुके है,वार्षिक परीक्षाएं भी कमोबेस सम्पन्न हो चुके,जिनकी परीक्षाएं नही हुई उनका जनरल प्रमोशन कर दिया गया है,फिर ये रोज रोज online class की बाध्यता क्यो की जा रही है,जानकारों का मानना है इससे बच्चों का बचपना छीना जा रहा है,वर्चुअल क्लास के चक्कर मे उन्हें घण्टो मोबाइल और लैपटॉप के स्क्रीन पर नजर गड़ाये रखने को मजबूर किया जा रहा है,स्कूलों में ग्रीष्मावकाश की अवधारणा के पीछे शिक्षाविदों की मंशा यह थी कि बच्चे और शिक्षक पढाई की बजह से साल भर चलने वाली मानसिक थकान से राहत पा सकें, किताबी ज्ञान के अलावा अन्य कौशल विकास कर सकें और अपने घर परिवार के सदस्यों से नैतिक,व्यवहारिक व जीवन मूल्यों की शिक्षा पा सके पर इस बार वो ऐसा कुछ नही कर पा रहे हैं,ये बच्चे ऑनलाइन वर्चुअल क्लास के शिकार बनकर मोबाइल के रेडिएशन, तेज लाइट भरे स्क्रीन और एक कमरे में ही अपना समय बिताने को मजबूर हैं। कहीं ऐसा न हो कि लगातार इन माध्यमो से हो रहे इस पढाई से उनकी आंखों, शारीरिक स्वास्थ्य, और मानसिक परेशानियां उत्पन्न न हो जाये..!

शालेय शिक्षाकर्मी संघ छग के प्रांताध्यक्ष वीरेंद्र दुबे ने इस विषय पर चिंता व्यक्त करते हुए शासन से मांग किया कि हालांकि विभाग की यह महत्वाकांक्षी योजना दूरदर्शी है और प्रासंगिक भी है किंतु इसका ग्रीष्मावकाश में अभी प्रयोग किया जाना अव्यवहारिक है। वैसे भी कोर्स कम्प्लीट करने जैसा कुछ भी नही है क्योंकि ये शिक्षा सत्र समाप्त हो चुका है,सबका जनरल प्रमोशन किया जा चुका है,बोर्ड परीक्षाएं एकाध विषय को छोड़कर सभी सम्पन्न हो चुकी है और शिक्षक मूल्यांकन कार्य में संलग्न है। बच्चों को उन्नत कक्षा के पुस्तक नही दिए गए है ऐसे में उपयुक्त यही होगा कि अभी चल रहे इस वर्चुअल क्लास की बाध्यता को स्थगित किया जावे क्योंकि इस वर्चुअल क्लास का लाभ सभी विद्यार्थियों को नही मिल पा रहा है। शासकीय विद्यालयों में अधिकांश बच्चे गरीब और मजदूर परिवार के बच्चे होते हैं,जो अभी अत्यंत आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं और वर्चुअल क्लास के लिए एंड्रॉयड मोबाइल और इंटरनेट डाटा पैक की जरूरत होती है,जो कि इनके पास नही है,अथवा बहुत कम लोगो के पास उपलब्ध है।वैसे तकनीकी ज्ञान से सम्बंधित यह महती योजना बिना प्रशिक्षण के पूर्ण सफलता प्राप्त करना संभव नही,पढाई तुंहर द्वार के क्रियान्वयन के लिये राज्य के उद्देश्यों में विभिन्न जिले अलग अलग निर्देश और दबाव देकर पलीता निकाल रहे हैं,इसलिए बिना उचित व्यवस्था किये इसका संचालन उचित नही।
शालेय शिक्षाकर्मी संघ के महासचिव धर्मेश शर्मा और प्रदेश प्रवक्ता जितेंद्र शर्मा ने चिंता व्यक्त किया कि लगातार मोबाइल स्क्रीन के सामने रहने से नौनिहालों की आंखों और मनोमस्तिष्क पर हानिकारक असर भी होने का अंदेशा है। बच्चों को मोबाइल के ज्यादा उपयोग से रेडिएशन व अन्य कारणों से स्वास्थ्यगत समस्याओ से बचाना भी हम सबका फर्ज है। इसी तरह गर्मी छुट्टी में भी ऐसे ऑनलाइन क्लास के अंतर्गत किताबी ज्ञान ही लेते रहेंगे तो उनका अन्य कौशल विकास,नैतिक ,व्यवहारिक, व शारीरिक विकास अवरुद्ध होगी,अतः इन्हें अभी इस ग्रीष्मावकाश में वर्चुअल क्लास से मुक्त रखना उचित होगा।

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