सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक हस्तक्षेप के बाद नियुक्त याचिकाकर्ता पुरानी पेंशन के हकदार…..स्कूल शिक्षा विभाग के रिक्त पदो के विरुद्ध की गई है भर्ती

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बिलासपुर। रामलाल डड़सेना एवं अन्य 35 याचिकाकर्ताओं ने पेंशन नियम 1976 के तहत पुरानी पेंशन का लाभ देने अपने अधिवक्ता अनूप मजूमदार के माध्यम से माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर में याचिका दायर कर कहा है कि हमारी नियुक्तियां नियमित रूप से रिक्त पेंशनभोगी पदों के खिलाफ भी थीं, जो उन्हें पेंशन के लिए हक प्रदान करती हैं।

प्रशासन और प्रबंधन के लिए जिला और जनपद पंचायत का नियंत्रण था, स्कूलों को कभी पंचायत को स्थानांतरित नहीं किया गया था। इसलिए याचिकाकर्ता राज्य सरकार के कर्मचारी है।

सिविल सेवा पेंशन नियम 1976 के प्रावधानों के अनुसार, अगर एडहॉक नियुक्ति किसी पद के विरुद्ध है और उसी को बिना ब्रेक के जारी रखा जाता है। फिर एडहॉक सेवा पर खर्च की जाने वाली अवधि को पेंशन के उद्देश्य के लिए अर्हकारी सेवाओं के निर्धारण के लिए माना जाएगा।

रामलाल डड़सेना एवं 35 अन्य की याचिका WPS No. 2930 of 2021 में माननीय उच्च न्यायालय ने शासन को नोटिश जारी कर अगला सुनवाई 7 सितंबर 2021 को निर्धारित किया है।

न्यायालय में रखे गए पक्ष अनुसार शिक्षाकर्मियों को स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा नियोजित किया गया था, हालाँकि नियुक्ति आदेश जारी करने की शक्ति और अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पंचायत विभाग के संबंधित अधिकारियों के माध्यम से थी,,जबकि नियुक्ति स्कूल शिक्षा विभाग और आदिम जाति कल्याण विभाग में उपलब्ध पदों के विरुद्ध की गई थी।

यहां यह ध्यान देना आवश्यक है कि 1997 के नियम – 3 के अनुसार नियमों का दायरा उन स्कूलों के लिए होगा जो जनपद या जिला पंचायत के नियंत्रण में हैं। उपर्युक्त खंडों से एक स्पष्ट व्याख्या एकत्र की जा सकती है कि 1997 के नियमों की स्थापना से पहले पंचायत विभाग के माध्यम से राज्य सरकार के तहत नियमित पदों के खिलाफ नियुक्तियां की गई थी, और स्कूलों के प्रशासन और प्रबंधन के लिए जिला और जनपद पंचायत का नियंत्रण था और उन्हें कभी स्थानांतरित नहीं किया गया था। याचिकाकर्ता इस प्रकार राज्य सरकार के कर्मचारी है।

पेंशन नियम 1976 के तहत 2004 के पूर्व नियुक्त कर्मचारियों को पुरानी पेंशन का लाभ दिए जाने का तथ्य व तर्क रखते हुए NPS योजना को उपयुक्त नही मानते हुए याचिका दायर की गई है।

शासन से जवाब आने के बाद याचिकाकर्ता रामलाल डड़सेना & 35 Ors. की ओर से अधिवक्ता अनूप मजूमदार पैरवी करेंगे।

अधिवक्ता अनूप मजूमदार ने माननीय उच्च न्यायालय में पक्ष रखा है कि याचिका कर्ता की नियुक्ति हालांकि जनपद पंचायत द्वारा हुई है लेकिन यह स्कूल शिक्षा विभाग के पत्र और अधिकार पर आधारित थी। पत्र में उल्लेख किया गया है कि स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा समय समय पर जारी निर्देशो के अनुसार ही नियुक्तियां की जा रही है।

जो पद सहायक शिक्षक, शिक्षक व व्याख्याता के थे, उन पदों को शिक्षा कर्मी वर्ग 03, वर्ग 02 व वर्ग 01 द्वारा भरने का अधिकार पंचायत विभाग के अधिकारियों को सौंपा गया था।

माननीय उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय के न्यायिक हस्तक्षेप के बाद मध्यप्रदेश शिक्षा कर्मी (भर्ती तथा सेवा की शर्तें ) नियम 1997 कानून लागू किया गया था।

स्कूल शिक्षा विभाग के रिक्त पदों के विरुद्ध याचिकाकर्ताओ की नियुक्ति शिक्षको के रिक्त पदों पर की गई थी।

73 वें व 74 वें संविधान संसोधन के अनुसार 1992 में ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन की प्रणाली शुरू की गई थी।

शिक्षा विभाग में सभी शिक्षाकर्मियों के अवशोषण के बाद भी, स्कूल या स्कूलों के कर्मचारियों को शिक्षा विभाग में स्थानांतरित करने में पंचायत विभाग का कोई नियम नहीं था। इसका अर्थ है कि स्कूल कभी भी पंचायत विभाग के प्रशासन के अधीन नहीं थे, लेकिन वे स्कूल शिक्षा और आदिम जाति कल्याण विभाग के अधीन थे, यह केवल पंचायत अधिनियम के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, स्कूल का नियंत्रण जिला और जनपद पंचायत को हस्तांतरित कर दिया गया था। संपूर्ण रूप से पंचायत विभाग को कभी भी राज्य स्तर पर स्कूलों के प्रबंधन के लिए कोई अधिकार नहीं दिया गया था, इसलिए सभी साधनों और उद्देश्यों के लिए स्कूलों पर अंतिम नियंत्रण स्कूल शिक्षा विभाग और जनजातीय विभाग का था।

जब स्कूलों को पंचायत विभाग में स्थानांतरित नहीं किया गया था, तो यह नहीं माना जा सकता है कि याचिकाकर्ता पंचायत विभाग के तहत जनपद पंचायत या जिला पंचायत के कर्मचारी बन गए।

सिविल सेवा पेंशन नियम 1976 के प्रावधानों के अनुसार, अगर एडहॉक नियुक्ति किसी पद के विरुद्ध है और उसी को बिना ब्रेक के जारी रखा जाता है। फिर एडहॉक सेवा पर खर्च की जाने वाली अवधि को पेंशन के उद्देश्य के लिए अर्हकारी सेवाओं के निर्धारण के लिए माना जाएगा। याचिकाकर्ताओं की सेवाओं को स्कूल शिक्षा विभाग के अधीन संविलियन कर लिया गया है, इसलिए सेवा में कोई बाधा नहीं है, इसलिए पेंशन के उद्देश्य के लिए 1998 से अब तक की सेवा की अवधि माना जावे।

शिक्षाकर्मियों को एक नियमित सिविल सेवक का दर्जा देने का निर्देश दिया जावे, जो शिक्षाकर्मियों के पद पर उनकी प्रारंभिक तिथि को देखते हुए उन्हें छत्तीसगढ़ सिविल सेवा पेंशन आयोग 1976 के तहत पेंशन का हकदार घोषित करता है।

याचिकाकर्ता 1998 से नियुक्त है, जबकि नवीन अंशदायी पेंशन योजना 2004 से लागू की गई है, अतः याचिकाकर्ता पुरानी पेंशन के हकदार है।

ज्ञात हो कि नवीन अंशदायी पेंशन योजना छत्तीसगढ़ में नवंबर 2004 के बाद नियुक्त कर्मचारियों के लिए लागू किया गया है, जबकि वर्तमान एल बी संवर्ग के शिक्षक जिनकी नियुक्ति 2004 के पूर्व 1998 में शिक्षा कर्मी के पद पर हुई थी वे पेंशन नियम 1976 के तहत पुरानी पेंशन के पात्र होंगे।

याचिकाकर्ता रामलाल डड़सेना, प्यारे लाल साहू, विनोद चौबे, माखन राठौर, उमेश दुबे,विकेश केशरवानी, इंद्रकुमार पटेल, गोपाल जायसवाल, रामकृपाल डड़सेना, शिव कुमार पटेल, केशव पटेल, ब्रजेश नायक, गिरिवर कुमार सांडिल्य, उत्तम साहू, डिलेश्वर डड़सेना, रविशंकर कुम्भकार, कल्पना चौहान, शशि किरण चौबे, श्रीमती गीता नायक, श्रीमती अर्चना डड़सेना, ताराचंद पांडेय, कौशल साहू, पीताम्बर साहू, भीम सिंह राठौर, सनत सिदार, संतोष कुमार देवांगन, बाबूलाल कश्यप, दिनेश कुमार पटेल, श्रीमती सेवती पटेल, श्रीमती शशि कला शरल, महेश खैरवार,फिरत राम कंवर, अंतुराम उरांव, प्रताप सिंह कंवर, रमेश बरेठ, संतोष रजक, ने माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर किया है।

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