सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक हस्तक्षेप के बाद नियुक्त याचिकाकर्ता पुरानी पेंशन के हकदार…स्कूल शिक्षा विभाग के रिक्त पदो के विरुद्ध की गई है भर्ती

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बिलासपुर। श्रीमती दुर्गा गुप्ता एवं अन्य 13 याचिकाकर्ताओं ने पेंशन नियम 1976 के तहत पुरानी पेंशन का लाभ देने अपने अधिवक्ता अनूप मजूमदार के माध्यम से माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर में याचिका दायर कर कहा है कि हमारी नियुक्तियां नियमित रूप से रिक्त पेंशनभोगी पदों के खिलाफ भी थीं, जो उन्हें पेंशन के लिए हक प्रदान करती हैं। प्रशासन और प्रबंधन के लिए जिला और जनपद पंचायत का नियंत्रण था, स्कूलों को कभी पंचायत को स्थानांतरित नहीं किया गया था। इसलिए याचिकाकर्ता राज्य सरकार के कर्मचारी है। सिविल सेवा पेंशन नियम 1976 के प्रावधानों के अनुसार, अगर एडहॉक नियुक्ति किसी पद के विरुद्ध है और उसी को बिना ब्रेक के जारी रखा जाता है। फिर एडहॉक सेवा पर खर्च की जाने वाली अवधि को पेंशन के उद्देश्य के लिए अर्हकारी सेवाओं के निर्धारण के लिए माना जाएगा।याचिकाकर्ताओं की सेवाओं को स्कूल शिक्षा विभाग के अधीन संविलियन कर लिया गया है, इसलिए सेवा में कोई बाधा नहीं है, इसलिए पेंशन के उद्देश्य के लिए 1998 से अब तक की सेवा की अवधि माना जावे।
श्रीमती दुर्गा गुप्ता एवं अन्य 13 द्वारा पुरानी पेंशन देने के लिए दायर की गई याचिका WPS No. 3492 of 2021 में माननीय उच्च न्यायालय ने शासन को नोटिश जारी कर अगला सुनवाई 7 सितंबर 2021 को निर्धारित किया है।

न्यायालय में रखे गए पक्ष अनुसार शिक्षाकर्मियों को स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा नियोजित किया गया था, हालाँकि नियुक्ति आदेश जारी करने की शक्ति और अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पंचायत विभाग के संबंधित अधिकारियों के माध्यम से थी,,जबकि नियुक्ति स्कूल शिक्षा विभाग में उपलब्ध पदों के विरुद्ध की गई थी।

पेंशन नियम 1976 के तहत 2004 के पूर्व नियुक्त कर्मचारियों को पुरानी पेंशन का लाभ दिए जाने का तथ्य व तर्क रखते हुए NPS योजना को उपयुक्त नही मानते हुए याचिका दायर की गई है।बशासन से जवाब आने के बाद याचिकाकर्ता श्रीमती दुर्गा गुप्ता & 13 Ors. की ओर से अधिवक्ता अनूप मजूमदार जी पैरवी करेंगे।

माननीय उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय के न्यायिक हस्तक्षेप के बाद मध्यप्रदेश शिक्षा कर्मी (भर्ती तथा सेवा की शर्तें ) नियम 1997 कानून लागू किया गया था। स्कूल शिक्षा विभाग के रिक्त पदों के विरुद्ध याचिकाकर्ताओ की नियुक्ति शिक्षको के रिक्त पदों पर की गई थी। 73 वें व 74 वें संविधान संसोधन के अनुसार 1992 में ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन की प्रणाली शुरू की गई थी। संपूर्ण रूप से पंचायत विभाग को कभी भी राज्य स्तर पर स्कूलों के प्रबंधन के लिए कोई अधिकार नहीं दिया गया था, इसलिए सभी साधनों और उद्देश्यों के लिए स्कूलों पर अंतिम नियंत्रण स्कूल शिक्षा विभाग का था। जब स्कूलों को पंचायत विभाग में स्थानांतरित नहीं किया गया था, तो यह नहीं माना जा सकता है कि याचिकाकर्ता पंचायत विभाग के तहत जनपद पंचायत या जिला पंचायत के कर्मचारी बन गए।

शिक्षाकर्मियों को एक नियमित सिविल सेवक का दर्जा देने का निर्देश दिया जावे, जो शिक्षाकर्मियों के पद पर उनकी प्रारंभिक तिथि को देखते हुए उन्हें छत्तीसगढ़ सिविल सेवा पेंशन आयोग 1976 के तहत पेंशन का हकदार घोषित करता है।

याचिकाकर्ता 1998 से नियुक्त है, जबकि नवीन अंशदायी पेंशन योजना 2004 से लागू की गई है, अतः याचिकाकर्ता पुरानी पेंशन के हकदार है। ज्ञात हो कि नवीन अंशदायी पेंशन योजना छत्तीसगढ़ में नवंबर 2004 के बाद नियुक्त कर्मचारियों के लिए लागू किया गया है, जबकि वर्तमान एल बी संवर्ग के शिक्षक जिनकी नियुक्ति 2004 के पूर्व 1998 में शिक्षा कर्मी के पद पर हुई थी वे पेंशन नियम 1976 के तहत पुरानी पेंशन के पात्र होंगे।

याचिकाकर्ता shrimati Durga Gupta, Shri Mukesh Kori, Shri gulab Banjara, Shri Arjun Singh, Shri Ram Dayal porte, Shri brijbhan Singh, Shri Kishan Lal nirmalkar, shrimati Pooja Sen, shrimati Samim Bano, Shri Lakhan Lal Sahu, Shri chandulal Singraul, shrimati gulab Dwivedi ने माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर किया है।

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