नई दिल्ली। एक साधारण से शर्ट और धोती में कर्नाटक के नारंगी विक्रेता हरेकला हजब्बा जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पद्मश्री का सम्मान लेने पहुँचे, तो सभी की नजरें उनकी तरफ अनायास ही मुड़ गईं। प्रति दिन मात्र 150 रुपए कमाने वाले 68 वर्ष के फल विक्रेता ने अपने खर्चे से गाँव में एक प्राइमरी स्कूल का निर्माण करवाया है। उन्हें सोमवार (8 नवंबर, 2021) को उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उन्हें भारत का चौथा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार मिला।
ये जानने लायक है कि शिक्षा के क्षेत्र में ये भागीरथी प्रयास करने के लिए उन्हें प्रेरणा कैसे मिली। कई वर्षों पहले एक विदेशी पर्यटक ने उनसे अंग्रेजी में नारंगी का दाम पूछा था। हरेकला हजब्बा को अंग्रेजी नहीं आती थी और इसीलिए उन्हें कुछ समझ में नहीं आया। इस बात ने उन्हें परेशान कर दिया। उन्हें गरीबी के कारण शिक्षा पाने का अवसर नहीं मिल सका था। उसी समय उन्होंने ठान लिया कि वो एक प्राथमिक विद्यालय का निर्माण करवाएँगे, अपने पैसे से।
उन्होंने कहा कि उन्हें तो पढ़ाई-लिखाई का मौका नहीं मिला, लेकिन वो नहीं चाहते थे कि गाँव के आज की पीढ़ी के बच्चे भी शिक्षा से वंचित रह जाएँ। आज उनके बनवाए विद्यालय में दसवीं तक की पढ़ाई होती है और उसमें 175 छात्र पढ़ते हैं। जनवरी 2020 में उन्हें पद्मश्री अवॉर्ड दिए जाने की घोषणा मोदी सरकार ने की थी। लेकिन, कोरोना संक्रमण आपदा के कारण उस साल ये कार्यक्रम नहीं हो सका। इसीलिए, 2020 और 2021 के पद्म सम्मान का कार्यक्रम अब आयोजित किया गया है।
A real hero.
Meet Harekala Hajabba Ji. A illiterate fruit vendor who devoted his entire life and earning’s towards educating others.
He also built a ‘Primary School’ for underprivileged children in his village.
Congratulations to him on being conferred with #PadmaShri pic.twitter.com/oE2MzR4Kk5
— Y. Satya Kumar (@satyakumar_y) November 8, 2021
वो मंगलोर शहर से 40 किलोमीटर दूर स्थित हरेकला नाम के गाँव में नारंगी बेचते हैं। 1995 से ही उन्होंने स्कूल बनवाने का कार्य शुरू कर दिया था। सन् 2000 में उन्होंने एक एकड़ जमीन पर अपनी सारी बचत का इस्तेमाल कर शिक्षा के इस मंदिर का निर्माण करवाया। उन्हें नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में ये सम्मान मिला। उनके दिल्ली आने की व्यवस्था के लिए वो स्थानीय सांसद नलिन कुमार क़तील से संपर्क में थे। उन्हें अब तक 500 संस्थाओं से सम्मान प्राप्त हो चुका है।
हरेकला हजब्बा कहते हैं कि उन अवॉर्ड्स के साथ-साथ वो अपने छोटे से घर में पद्मश्री के सम्मान को भी सहेज कर रखेंगे। उनके दिल्ली आने-जाने का खर्च सरकार ने ही उठाया है। उनके बनवाए स्कूल को सरकारी मान्यता मिली हुई है। ‘दक्षिण कन्नड़ जिला पंचायत’ ने उन्हें इसके निर्माण की अनुमति दी थी और शिक्षा विभाग ने भी इसके लिए हरी झंडी दिखाई थी। उनके ऊपर ‘हरेकला हजब्बा जीवन चरित्र’ नाम की एक पुस्तक सामाजिक कार्यकर्ता इस्मत पजीर ने लिखी है।
Harekala Hajabba, a fruit-vendor from Karnataka's Mangaluru, who built a school in his village from his earnings, was conferred with the Padma Shri award today pic.twitter.com/t0lOdiOQpd
— ANI (@ANI) November 8, 2021