जब तक स्कूल बना रहेगा प्रयोगशाला तब तक शिक्षा का स्तर सुधरना नामुमकिन……CGTA के प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा ने कहा….शिक्षा में निरन्तरता व स्थायी दिशा तय नही

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रायपुर। छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष संजय शर्मा, प्रदेश संयोजक सुधीर प्रधान, वाजिद खान, प्रदेश उपाध्यक्ष हरेंद्र सिंह, देवनाथ साहू, बसंत चतुर्वेदी, प्रवीण श्रीवास्तव, विनोद गुप्ता, डॉ कोमल वैष्णव, प्रांतीय सचिव मनोज सनाढ्य प्रांतीय कोषाध्यक्ष शैलेन्द्र पारीक ने कहा है कि छत्तीसगढ़ के शिक्षा का स्तर बहुत ही गंभीर व चिंतन का विषय है, विभाग के अधिकारी स्कूल को प्रयोगशाला बना दिये हैं, जिसके कारण शिक्षा स्तर में सुधार नामुमकिन हो गया है।

*365 दिन में 366 प्रकार की जानकारी मंगाई जाती है।*
प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा ने बताया कि सभी जानकारी अर्जेंट होती है।
शिक्षक कागज, ऑनलाइन व व्हाट्सएप में ज्यादा जानकारी भेजते हैं, बच्चों से कम जुड़ पाते हैं। शिक्षक जब तक अध्यापन के लिए पूर्णतः मुक्त न हो, अभिभावकों की सहभागिता न हो, स्कूल घर परिवार में शैक्षिक माहौल न हो, तो शिक्षा में सुधार सम्भव नही है।

*शिक्षा स्तर गिरने का महत्त्वपूर्ण कारण गैर शैक्षणिक कार्य,*
संजय शर्मा ने बताया कि स्कूल में जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र बनवाना, मध्यान्ह भोजन, छात्रवृत्ति, मतदाता सूची बनाने का कार्य, निर्वाचन, सभी प्रकार का सर्वे, सायकल वितरण, डाक बनाना, मीटिंग, प्रशिक्षण, टीकाकरण, दवाई वितरण, आदि के बाद कुछ समय बच जाय तब पढ़ाई कार्य का समय है, इन्ही सब कार्य में समय निकल जाता है, तो आखिर शिक्षक पढ़ायेगा कब,,?

नित नए नए प्रयोग NGO की दखल एवम इसके अलावा अन्य गैर शिक्षकीय कार्य ने एक शिक्षक को स्वतंत्र रूप से कार्य करने में अवरोध लाया है। शिक्षा विभाग एक प्रयोगशाला बन गया है जहां पर एक कार्य पूरा नहीं होता उसके पहले दूसरा प्रोजेक्ट लाद दिया जाता, कुछ दिनों बाद दोनों का पता नहीं चलता कि उस पर हुआ क्या है,? वास्तव में शिक्षकों को पढ़ाई कराने का पूर्ण अवसर ही नहीं मिलता इतना अधिक गैर शिक्षकीय कार्य कराए जाते हैं की शिक्षक से ज्यादा वह बाबू बन कर रह गया है।

उन्होंने कहा है कि प्रदेश का पूरा प्रशासनिक तंत्र व शिक्षा विभाग,, केवल एक ही प्रयास कर रहा है,, शिक्षक किसी भी तरह से कक्षा से दूर रहे,, नित नई जानकारियां, एक ही जानकारी को बार बार मांगना, नित नये प्रयोग बन्द कर शिक्षक को अध्यापन के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया जावे, फिर अपेक्षित परिणाम नही आये तो शिक्षक वर्ग जिम्मेदार होगा।

शिक्षा स्तर गिरने का एक और महत्त्वपूर्ण कारण दर्ज छात्र संख्या में वृद्धि, परन्तु सेटअप 2008 का, जिसमे शिक्षको की सीमित संख्या है, नवीन सेटअप की जरूरत है। शालाओं में कार्यालयीन कार्य की अधिकता भी है। प्राथमिक व माध्यमिक शाला में कम से कम 5 शिक्षक अनिवार्य हो ।आज यह स्थिति है अधिकांश शाला में 2 शिक्षक जिसमे 1 पूरा साल भर नए डाक व संकुल मीटिंग में ही व्यस्त रहते है।

*दीर्घकालिक योजना शिक्षकों से राय लेकर तैयार किया जावे*

संजय शर्मा ने कहा है कि शिक्षा विभाग कोई भी योजना लागू करे उसे शिक्षक समुदाय के पास पहले सार्वजनिक तौर पर चर्चा में लाना चाहिए, फिर लागू करना चाहिए। शिक्षकों को थोपी गई नित नए अल्पकालिक योजना से शिक्षा गुणवत्ता की कल्पना कोरी है। ऐसी कोई शिक्षा योजना बन ही नही सकती जो केवल 6 महीने या साल भर में आपको तुरंत रिजल्ट दे सके एक निरन्तरता व स्थायी, दीर्घकालिक कार्ययोजना अनुभवी शिक्षकों के सहयोग से बनना चाहिए न कि 2 या 4 माह की कार्ययोजना।
हम प्रगतिशील व सकारात्मक सोच के अभाव में राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ गए, शिक्षक संवर्ग व संस्था प्रमुख के हजारों पद रिक्त होने से स्कूल का शालागत व्यवस्था भी प्रभावित हुआ है, विभाग द्वारा सही मॉनिटरिंग नही किये जाने के कारण कसावट नही है।

 

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