शिक्षाकर्मी के रूप में आखिरी पगार लेते नम हुई आंखे..संघर्षमय अतीत की यादों ने एक बार फिर भावुक किया शिक्षाकर्मियों को

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सर्व शिक्षा अभियान एवं शिक्षा के शिक्षकों के लिए जैसे ही राज्य परियोजना कार्यालय राजीव गांधी शिक्षा मिशन रायपुर से वेतन जारी हुआ,शिक्षा कर्मियों में एक तरफ शिक्षा विभाग में संविलियन की खुशी के साथ ही दूसरी तरफ 23 वर्षों के संघर्षमय सेवाकाल में शिक्षाकर्मी के रूप में जून माह के आखिरी पगार लेते हुए बेहद भावुकता नजर आई।
ज्ञात हो कि शिक्षा कर्मियों की 23 वर्षों से लंबित शिक्षा विभाग में संविलियन की मांग को सरकार ने पूरी कर दी है!जिससे शिक्षा कर्मियों की अब जुलाई माह का वेतन शिक्षा विभाग से जारी होगा।पंचायत विभाग से जून माह के रूप में आखिरी वेतन लेते हुए कुछ शिक्षक बेहद भावुक नजर आए।
👉🏿जब महज 500 रुपये वेतन से चलता था परिवार

शिक्षाकर्मियों का मानना है कि 23 वर्ष पूर्व पंचायत विभाग के अस्थाई कर्मचारी के रूप में महज पांच सौ रुपये से सेवा आरम्भ करने वाले शिक्षक शनै शनै अपने संगठन के संघर्ष और धीरज के चलते आज एक स्थाई शिक्षक के रूप में अपना वास्तविक सम्मान को प्राप्त कर लिया।
👉🏿जब दोहरे मापदंड के शिकार हुए थे शिक्षाकर्मी*
अतीत के पन्नो को उलटते हुए शिक्षाकर्मियों ने बताया कि किस तरह उन्हें एक ही कार्यक्षेत्र में काम करने के बावजूद नियमित शिक्षक और शिक्षाकर्मियों के बीच सम्मान और वेतन से वंचित होना पड़ता था।उस वक्त जरूर मन मे निराशा का भाव पैदा होता था,लेकिन अपनी इच्छाशक्ति और संगठनात्मक हौसले के चलते एक न एक दिन पूर्ण शिक्षक के रूप में दर्जा प्राप्त करने का विश्वास भी था। बीते 23 वर्ष पहले जब पंचायत विभाग में शिक्षाकर्मियों को नियुक्त किया गया तब उनकी सेवाशर्तों में वो सभी सुविधा शामिल नही की गई जो एक नियमित शिक्षक को दी जाती थी।एक ही स्थान में नियमित शिक्षकों के साथ रहकर पूर्ण ईमानदारी और लगन से शिक्षाकर्मी अपने दायित्वों को निभाते रहे!और जब माह के अंत मे नियमित शिक्षकों को वेतन मिलता था तो वेतन में भारी अंतर और समय की अनियमितता को देखकर जरूर शिक्षा कर्मियों को निराशा होती थी।लेकिन शिक्षा कर्मियों ने इसे कभी भी शिकायत के रूप में न लेकर इसे एक चुनौती के रूप में लिया,और अल्प वेतन में भी कार्य कर समाज और संस्था की सेवा करते रहे।कई वर्षों से शैक्षिक धरातल पर समाज की नवीन पीढ़ी को शिक्षित कर वर्तमान समाज की आधारशिला रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शिक्षाकर्मी, शिक्षक पंचायत आर्थिक आजादी के साथ समाज में सम्मान पाने संघर्षरत थे, ये समाजिक चिंतन का बहुत बड़ा विषय था। शैक्षिक पृष्ठभूमि पर शिक्षा विभाग के दोहरे मापदंड के शिकार शिक्षक पंचायत संवर्ग किसी विभाग के एक अन्य शिक्षकों की तुलना में हर दृष्टि से शिक्षित थे। एक ही विभाग, एक समान कार्य विभाजन, एक समान दायित्व, एक समान योग्यता होने पर भी उन पर यह दोहरा व्यवहार होता था।
*👉🏿जब वेतन भत्तों और अन्य सुविधाओं में हुई कटौती-*
1995 से शिक्षाकर्मियों को लगभग एक तिहाई से भी कम वेतन, पांचवें, छठे और सातवें वेतन देने के बजाय उसको समतुल्य और कुछ को कुछ भी नहीं नाम पर निरंतर आर्थिक शोषण किया गया। ना तो शिक्षक पंचायत संवर्ग को क्रमोन्नति समयमान ही दिया गया जबकि इसी विभाग में कार्यरत अन्य शिक्षकों को सेवाकाल में दो क्रमोन्नति का प्रावधान था। हद तो तब हो गई की जब शासन ने शिक्षक पंचायत संवर्ग के शिक्षकों के समान वेतन एवं भत्ते के लिए आदेश जारी किया लेकिन कुछ ही दिनों पश्चात केवल महंगाई भत्ते तक उसे सीमित कर दिया गया और न तो चिकित्सा भत्ता और न ही मकान भत्ते इत्यादि कोई प्राप्त हो रहा था।
शिक्षाकर्मियों के साथ विकट समस्या थी कि वह अपने निवास स्थान पर जाने के लिए स्थानांतरण की सुविधा के लिए तरस रहे थे। पति पत्नी के आधार पर भी स्थांतरण का नियम खुला जो कि कठिन शर्तों के कारण अप्रासंगिक था।शिक्षक पंचायत संवर्ग के आश्रित लोगों को अनुकंपा नियुक्ति प्रदान नहीं की जा रही थी।

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